Tips related to

Monday, 17 May 2010

गांडीव की टंकार


हे दसों दिशाओं सुन लो तुम राहें है सभी यहाँ बंद परी
ध्रितराष्ट्र वो चुपचाप है आँखे प्रलय ने बंद की 
दादा वो भीष्म चुपचाप हैं  चुपचाप से गुरु द्रोण हैं 
काका विदुर चुपचाप हैं  पुर-हस्तिना खामोश हैं 

हे वक्त तुम हो साक्षी हम शांति के थे पक्षधर 
शकुनी के पासों ने मेरा तन-मन लिया था सारा हर 
पर सत्य के राहों पे चल के पाया मैंने कुछ नहीं
राहें सभी अब बंद है अब लक्ष्य दिखता ही नहीं
वो भेजते घुसपैठ है और जोरते है अपलक 
फिर भी वो बैठा अमेरिका चुपचाप है मदहोश है 

गांडीव मेरी बोलेगी एक-एक शहर को तोरेगी 
ये संघ मेरे साथ है अफगान अब क्या बोलेगी 
कश्मीर सारा लूँगा मैं ध्रितराष्ट्र चाहे चुप रहें
एक-एक मिसाईल छोरुंगा जो हर शहर को तोरेगी 
हे चाइना मेरी सुनो, हे रुश तुम भी ये सुनो 
अफगान हो या  बंगला हर चल अब खामोश है

एक रूद्र की आँखें खुले तो भी प्रलय आ जायेगा
ये अग्नि जो मैं छोर दूँ तो भी प्रलय आ जायेगा
ये युद्ध नंगा नाच है, है दर्शको की भीर सी
बलराम को इस तीर्थ में भी तीर्थ दिखता है नहीं
ये युद्ध ही बस तीर्थ है ये युद्ध ही बस सत्य है
युध्त्व बस व्यक्तित्व है बाकी सभी खामोश है 

0 comments:

Post a Comment

Twitter Delicious Facebook Digg Stumbleupon Favorites More

 
Design by Free WordPress Themes | Bloggerized by Lasantha - Premium Blogger Themes | 100 Web Hosting