ध्रितराष्ट्र वो चुपचाप है आँखे प्रलय ने बंद की
दादा वो भीष्म चुपचाप हैं चुपचाप से गुरु द्रोण हैं
काका विदुर चुपचाप हैं पुर-हस्तिना खामोश हैं
हे वक्त तुम हो साक्षी हम शांति के थे पक्षधर
शकुनी के पासों ने मेरा तन-मन लिया था सारा हर
पर सत्य के राहों पे चल के पाया मैंने कुछ नहीं
राहें सभी अब बंद है अब लक्ष्य दिखता ही नहीं
वो भेजते घुसपैठ है और जोरते है अपलक
फिर भी वो बैठा अमेरिका चुपचाप है मदहोश है
गांडीव मेरी बोलेगी एक-एक शहर को तोरेगी
ये संघ मेरे साथ है अफगान अब क्या बोलेगी
कश्मीर सारा लूँगा मैं ध्रितराष्ट्र चाहे चुप रहें
एक-एक मिसाईल छोरुंगा जो हर शहर को तोरेगी
हे चाइना मेरी सुनो, हे रुश तुम भी ये सुनो
अफगान हो या बंगला हर चल अब खामोश है
एक रूद्र की आँखें खुले तो भी प्रलय आ जायेगा
ये अग्नि जो मैं छोर दूँ तो भी प्रलय आ जायेगा
ये युद्ध नंगा नाच है, है दर्शको की भीर सी
बलराम को इस तीर्थ में भी तीर्थ दिखता है नहीं
ये युद्ध ही बस तीर्थ है ये युद्ध ही बस सत्य है
युध्त्व बस व्यक्तित्व है बाकी सभी खामोश है
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