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Sunday, 27 June 2010

आँशु बहा रहें है वो ..जो बिजली गिराने वाले है |

महंगाई के खिलाफ बीजेपी ने शनिवार को देशभर में प्रदर्शन किए। मुंबई में पार्टी के प्रदर्शन की बागडोर बीजेपी के सीनियर नेता राम नाइक ने संभाली। जब राम नाइक पेट्रोलियम मंत्री थे, तब उन्होंने ही पेट्रोलियम सेक्टर को सरकारी कंट्रोल से मुक्त करने की शुरुआत की थी।

बेशक मनमोहन सिंह ने 1991 में आर्थिक मुक्त नीतियों की शुरुआत की थी, मगर पेट्रोलियम उत्पादों को लेकर उनकी नीतियां ज्यादा उदार नहीं थी। तेल उत्पादों के मामले में उन्होंने पुरानी नीति को ही अपनाया, जिसके तहत साल में एक बार ही घाटे का आकलन किया जाता था। इसी के आधार पर फैसला होता था कि कितना घाटा सरकार या तेल कंपनियां सहें और कितना भार लोगों पर दाम बढ़ाकर डाला जाए। यानी कीमतें साल में एक बार बढ़ती थीं।

मगर 1999 में जब एनडीए सरकार आई और राम नाइक पेट्रोलियम मंत्री बने तो उन्होंने अमेरिका, डब्ल्यूटीओ और तेल कंपनियों के दबाव में तेल सेक्टर को मुक्त करने की कवायद शुरू कर दी। 2002 में उन्होंने पेट्रोलियम सेक्टर को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिया। सब्सिडी कम करने की कोशिश शुरू की। पेट्रोल और डीजल के दामों को अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार से जोड़ दिया गया। कहा गया कि विदेशी बाजार में तेल की जो कीमत होगी, उसी के आधार पर घरेलू बाजार में भी कीमतें बढ़ेगी। तेल कंपनियों का यह अधिकार दे दिया गया कि वे हर 15 दिन में समीक्षा करके कीमतें बढ़ाएं या घटाएं। यह सब डेढ़ साल तक चला, मगर बाद में एनडीए के कई नेताओं और जनता के भारी विरोध को देखते हुए इसे बंद कर दिया गया।

इकॉनमिस्ट के. के. मदान का कहना है कि पेट्रोल और डीजल में बढ़ोतरी अब आम आदमी के दुख-दर्द का मुद्दा नहीं बल्कि राजनीतिक मुद्दा बन गया है। एनडीए ने पेट्रोलियम सेक्टर को फ्री किया और अब यूपीए उस परंपरा को आगे बढ़ा रही है। किसे दोष दें, नई परंपरा बनाने वाले को या उसे आगे बढ़ाने वाले को |

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