Tips related to

Tuesday, 29 June 2010

मोक्ष की प्राप्ति

हिंदू धर्म में मोक्ष की प्राप्ति अनिवार्य मानी गई है। जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त होना मोक्ष माना गया है और इसके लिए ईश्वर की कृपा पाना अनिवार्य है, लेकिन बौद्ध मत के अनुसार मुक्ति के लिए किसी ईश्वरीय अथवा दैवी अनुकंपा की आवश्यकता नहीं। बौद्ध मत के अनुसार वस्तुओं और स्थितियों को उनके यथार्थ रूप में देखने की योग्यता उत्पन्न होना ही मुक्ति अथवा मोक्ष है और इसे ही निर्वाण कहा गया है। स्वयं को तथा संसार की सारी वस्तुओं को मात्र देखना और उनके प्रति राग-द्वेष का भाव न रखते हुए आगे बढ जाना निर्वाण की प्राप्ति में सहायक है। गीता में वर्णित समत्वं योग उच्यतेकी तरह समता भाव में स्थित होना ही निर्वाण है।
संसार अथवा संसार की वस्तुओं के वास्तविक स्वरूप को जानने के लिए आवश्यक है स्वयं के वास्तविक स्वरूप को जानना। स्वयं को जान लेंगे तो संसार को जान लेंगे तथा संसार को जान लेंगे तो स्वयं को और अधिक अच्छी प्रकार से जानना संभव हो सकेगा। यही जानने की एक विधि है विपश्यना।विपश्यनामें सबसे पहले हम केवल श्वास के आवागमन पर ध्यान केंद्रित करने का अभ्यास करते हैं, जिसे आनापान कहते हैं। आनापानके अभ्यास के बाद विपश्यना अर्थात् स्वयं का मानसिक निरीक्षण करने की प्रक्रिया प्रारंभ होती है। स्थूल से सूक्ष्म अंतरावलोकनकी प्रक्रिया है विपश्यना। विपश्यनासाधना में पहले पूरे तीन दिनों तक आनापानका अभ्यास ही करना होता है। आनापानद्वारा मन पर नियंत्रण कर एकाग्रता का विकास करना सरल है। साधना का उद्देश्य भी तो यही है कि हमारा मन हमारे वश में हो। विपश्यनाअर्थात विशेष रूप से देखने की प्रक्रिया। विपश्यनाशरीर के विभिन्न अंग-प्रत्यंगों के मानसिक निरीक्षण की प्रक्रिया है। बिना अच्छे-बुरे का निर्णय किए, बिना सुख-दुख का अनुभव किए बस देखना और आगे बढ जाना यही तो साक्षी भाव है। यही साक्षी भाव ही विपष्यनाहै। ठोस शरीर को निरंतर तरंग रूप में परिवर्तित होते देखना ही विपश्यनाहै। एक बार अपने इस वास्तविक स्वरूप को जान लेंगे तो बाकी संसार को जानने में और उसके बाद जीते जी मोक्ष प्राप्त करने में कोई बाधा आ ही नहीं सकती।

0 comments:

Post a Comment

Twitter Delicious Facebook Digg Stumbleupon Favorites More

 
Design by Free WordPress Themes | Bloggerized by Lasantha - Premium Blogger Themes | 100 Web Hosting