ओम शब्द का हमारे शास्त्रों में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। हर मंत्र के पहले ॐका उच्चारण किए जाने का विधान है। ओम के उच्चारण के बिना मंत्र का कोई लाभ नहीं होता। गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, सम्पूर्ण वेदों में प्रणव ओंकार मैं ही हूं। ऐसा इसलिए कहा गया है, क्योंकि वेदों में भगवान का स्वरूप ॐ अक्षर ही है। सबसे पहले प्रणव अर्थात ॐ प्रकट हुआ। प्रणव से ही त्रिपदा गायत्री प्रकट हुई। त्रिपदा गायत्री से वेद प्रकट हुए। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि वेदों का सार तत्व ओम ही है। वेदों में से यदि ओम को निकाल दिया जाए, तो शेष क्या बचेगा? भगवद्गीता में ओम - ओम शब्द के कई अर्थ हैं। इसे अएम,उदगीथ,एकाक्षर मंत्र, ओंकार, नादब्रम्ह,पंचवर्ण,परमाक्षर,प्रणव, ब्रम्हाक्षर,वेदादि,शब्दब्रम्ह,शब्दाक्षर,स्वर ब्रम्हभी कहते है। इन सभी शब्दों के गहन अर्थ पर विचार करने पर हमें ज्ञात होगा कि यह शब्द या मंत्र साक्षात् भगवान का ही स्वरूप है। भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि जो साधक ॐअक्षर ब्रम्हका मानसिक उच्चारण और मेरा स्मरण करते हुए शरीर को छोड कर जाता है, वह परम गति को प्राप्त होता है। नृसिंह पूर्व तापनीयउपनिषद में कहा गया है, जो प्रणव का अध्ययन करता है, वह सबका अध्ययन करता है। इसीलिए ओम शब्द का अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है।
ओम तारक है-ओम शब्द का यह महत्व शास्त्रों में है, किंतु क्या ओम शब्द की इस महिमा का कोई वैज्ञानिक आधार है? इसके उच्चारण से इस असार संसार में भी क्या कुछ लाभ हैं? ये ऐसे प्रश्न हैं, जिनके उत्तर व्यावहारिक जगत में खोज के विषय हैं। इस सम्बन्ध में भारत में तो कोई प्रामाणिक कार्य हुआ नहीं, पर ब्रिटेन के एक साइन्स जर्नल ने शोध के परिणाम बताए हैं। रिसर्च ऐंडइंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंस के प्रमुख प्रो. जे. मार्गनऔर उनके सहयोगियों ने सात वर्ष तक हिन्दू धर्म के इस प्रतीक चिह्न ॐके प्रभावों का अध्ययन किया। इस दौरान उन्होंने मस्तिष्क और हृदय की विभिन्न बीमारियों से पीडित 2500पुरुषों और 2000महिलाओं का परीक्षण किया। इन सारे मरीजों को केवल वे ही दवाइयां दी गई, जो उनका जीवन बचाने के लिए आवश्यक थीं। शेष सब बन्द कर दी गई। सुबह 6से 7तक यानी कि एक घंटा इन लोगों को साफ स्वच्छ खुले वातावरण में योग्य शिक्षकों द्वारा ॐमंत्र का जाप कराया गया। इन दिनों उन्हें विभिन्न ध्वनियों और आवृत्तियोंमें ॐका जाप कराया गया। हर तीन माह में हृदय, मस्तिष्क के अलावा पूरे शरीर का स्कैनकराया गया। चार साल तक ऐसा करने के बाद जो रिपोर्ट सामने आई, वह आश्चर्यजनक थी।
सत्तर प्रतिशत पुरुष और बयासी प्रतिशत महिलाओं में ॐका जाप शुरू करने के पहले बीमारियों की जो स्थिति थी, उसमें नब्बे (90) प्रतिशत कमी दर्ज की गई। कुछ लोगों पर मात्र दस प्रतिशत असर ही हुआ। इसका कारण प्रो. मार्गनने यह बताया कि उनकी बीमारी अन्तिम अवस्था में पहुंच चुकी थी। इस प्रयोग से यह परिणाम भी प्राप्त हुआ कि नशे से मुक्ति भी ॐके जाप से प्राप्त की जा सकती है। इसका लाभ उठाकर जीवन भर स्वस्थ रहा जा सकता है |
कैसे हुआ लाभ-प्रो. मार्गनकहते हैं कि विभिन्न आवृतियोंऔर ध्वनि के उतार-चढाव से पैदा होने वाली कम्पन क्रिया से मृत कोशिकाओं का पुनर्निर्माण हो जाता है। रक्त विकार होने ही नहीं पाता। मस्तिष्क से लेकर नाक, गला, हृदय रोग और पेट तक तीव्र तरंगों का संचार होता है। रक्त विकार दूर होता है और स्फूर्ति बनी रहती है|
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