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Thursday, 11 February 2010

प्यास

बादल लौटे है यूं ही नहीं
उसे प्यास खींच के लायी है
जग में ना रहे कोई प्यासा ही
इसीलिए सींचती आयी है

रातें प्यासी बातें आधी
चंदा चकोर भी प्यासा है
कोयल गति है प्यासी ही
पाने की बस अभिलाषा है

दरिया के बिच खरा मानव
पक्षियाँ कर रही है कलरव
मरघट में वो प्यासी आँखे
सो रहा जहा सारा कौरव

भक्तों की प्यास जो ख़तम करे
मंदिर मस्जिद देखा ही नहीं
चल जाओ चर्च और गुरूद्वारे
पर चिंता की रेखा है वहीँ

बदल बरसा है घुमर घुमर
पर मोर अभागा प्यासा है
मधुप्रेम कहा मिलता जग में
हाँ, मन में झूठी आशा है.

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